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मंथन [कहानी ] ब्लॉगर सत्यजीत पुरकायस्थ
जब मेरी पहली पोस्टिंग जिले के अंदुरुनी क्षेत्र में हुआ ,दिल में अरमान लिए निकल चूका था एक इकिस्वी सदी का शिक्षक ,नक्शल प्रभावित् वह गांव .भय और आतंक का ऐसा मंजर की विद्द्यालय पशुआलय के सामान था कहना अति संयोक्ति नहीं होगा .तीन घंटे की जंगली रास्ते और पहाड़ी में सर्चिंग के बाद वह गांव मिला था .पानी के लिए कंठ तरस चुके थे ,एक ब्यक्ति से पानी मागने पर लोटे में भर कर लाया और कहा –जूठा करके मत पीना .और देखते ही देखते बच्चे बूढ़े जमा हो गए मुझे देखने के लिए अब मैं उन लोगो के बीच में था सभी मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे की मैं ही हूँ ओ भटका हुआ नक्सली जो उनके बर्बादी का कारण बना हो .मैंने अपने आपको सम्हाला और कहा — मैं शिक्षक हूँ , आपके ही गांव में रह कर शिक्षा देना है .
कौन जात के हो ? कहाँ से आये हो ? भीड़ में से एक बुजुर्ग बोला .
मैं बहुत दूर से आया हूँ बोलकर मेरे गांव की दिशा की ओर ऊँगली दिखाया ,और कायस्थ जाति का हूँ बताया .” हूँ ” बुजुर्ग ने धीरे से कहा .
‘तभी भीड़ में खुसुर फुसुर होने लगी लोग कहने लगे क्या ये गुरूजी टिकेगा ? ‘ अब तक तो तीन निलंबित हो चुके .’
‘काहे नहीं टिकेगा ,आप लोग उन्हें रहने के लिए जगह तो दो और शिकायत बाजी बंद कर दो . ‘
उस भीड़ में मुझे एक ब्यक्ति चाण्यक्य मिल गया , लेकिन मैं सोचने के लिए मजबूर था —आखिर क्यों तीन शिक्षक यहाँ नहीं टिके ? मैंने एक ब्यक्ति से पूछा तो उसने शिक्षक का ही दोष बताकर चला गया . मुझे लग रहा था सभी लोग कुछ छुपा रहे है . मैंने गांव वालो को नमस्कार किया और तीन दिन के भीतर सामान लेकर पहुचुँगा बताकर अपने घर लौट आया .
घर में पहुच कर अपने माता पिता को बताया की लगता है वहा के लोग छुआ छूत की संकीर्ण बिचार धाराओं
के है .
“जिंदगी के ये सब तो चैलेन्ज है बेटे तुम शिक्षक बन कर जा रहे हो तुम्हे समाज के लिए भी कार्य करना पड़ेगा ,मुझे देखो पंद्रह सालो से गांव में सामाजिक कार्य कर रही हूँ .है तो नौकरी छोटी २२५ रुपये सरकर देती है लेकिन गांव वालो ने जो दिया वह अनमोल है .देख जरा उन दीवालो पर लगे सम्मान पत्रो को ये मेरे मेहनत और लगन का नतीजा है .और अब तू भी जा और लग जा काम पर ..और समाज में आदर्श शिक्षक बनकर उभर .” माता जी ने कहा .
मैं दीवार पर लगे प्रमाण पत्रो को देखने लगा और खयालो में खो गया —
उस समय पांच छह साल का था जब मेसी माँ का पोस्टिंग भी एक ऐसे अंदरूनी क्षेत्र में हुआ था जहा अर्ध्य नग्न लोग थे छुआ छूत भेद भाव से ग्रसित ,लेकिन आज सब कुछ बदल गया सिर्फ जागरूकता अभियान चलने से –तो क्यों न मैं भी समाज को जागरूक करने का आगाज कर दू .
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