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Manthan part 2 contest

Ayush
Ayush
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दूसरे दिन मैं अपना सामान लेकर उस गांव में पहुँच चूका था वहां के लोगो ने भीड़ लगा दी उसी भीड़ में से एक ब्यक्ति बोला ये गुरूजी रूकेंगे क्योकि ऐसा पहली बार हुआ है की कोई पुरे सामान के साथ यहाँ आया है .सभी बहुत उत्साह के साथ सामान उतारने लगे .अब मैं एक ऐसे अंदरूनी गांव में था जहाँ सभ्यता की प्रगति कोशो दूर था .पानी बिजली की किल्लत और पक्की सड़क तो थी ही नहीं .वहां का सुनापन मुझे काटने को दौड़ रहा था , लेकिन मुझे तो उस परिस्थिति में ढलना था .मैंने खाना पकाया खाया और आराम करने लगा ,चार पांच दिनों तक मेरी तन्हाइयो का सहारा गांव के लोग ही बने रहे .
अगली सुबह नहाने के लिए हैण्ड पम्प में गया , मैंने जो देखा उसे देखकर हँसी आ रही थी ,छुआ छूट का ऐसा आडम्बर मैंने पहले नहीं देखा . एक महिला पानी लेने आई और पहले वह हैण्डपम्प को धोई जिससे हैंडपम्प का पानी रिसकर घड़े में पड़ जहा था .मैंने पूछा तो वह बताई हमसे छोटे जाति और न जाने कितने लोगो ने इस हैंडपम्प को छुआ होगा जिससे यह जल अपवित्र हो गया है . ‘क्या हैंडपम्प को धोने से जल पवित्र होगा? या और गन्दा होगा, और गन्दा पानी पिने से आप लोग बीमार हो जायेंगे .’
असल में उस गांव में जमीदारी प्रथा का बोल बाला था ,गांव में आदिवासी और अन्य समुदाय के लोग थे , आदिवासियों के प्रति उनमे घृणा थी और इसकी वजह थी उनका रहन सहन , खान पान , लोग उनसे मजदूरी करवाते और तुक्छ जाति का बोलकर उनसे छुआ छूत मानते .
आश्चर्य तो तब हुआ जब विद्द्या के मंदिर में भी छुआ छूत का दृश्य देखने को मिला मध्यान भोजन के लिए बालक बालिकाएं अलग अलग टुकड़ियों में बैठ गए.यह देखकर मुझसे रहा नहीं गया ,और मैंने सभी को एक समूह में बिठाकर खाना खिलवाया ,और कहा छुआ छूत एक सामाजिक बुराई है जब बनाने वाले ने हमसे भेद भाव नहीं किया तो हम कौन होते है उसके बनाये वसूलो को तोड़ने वाले ? बच्चो की मानसिकता तो मैं बदल लिया था.किन्तु लोगो की मानसिकता बदलने के लिए सही वक्त का इंतजार था .
तीन साल से बंद स्कूल का जीर्णोधार मेरे द्वारा हो चूका था .विकासखंड शिक्षा अधिकारी ने मुझे पदभार देते हुए कहा था कि अब तुम ही उस गो के सर्वे सर्वा हो .मैं गांव में रहकर अतिरिक्त समय में निरक्षर लोगो को साक्षर करने का कार्य शुरू कर दिया .जागरूकता अभियान कि रैलियां निकाली गई ,इसी बीच मेरे लिए एक और सहयोगी शिक्षक का आगमन हुआ किन्तु वह आदिवासी था ,उसके आदिवासी होने के कारण शुरू से ही उसके प्रति घृणा लोगो के मन में ब्याप्त हो गया . उन्हें भोजन पत्तल में दिया गया और सोने के लिए घर का बरामदा दिया गया .मैं उस दिन अपने ब्लॉक में गया था मुझे आने में विलम्ब हो गया क्योकि हमारा कार्यालय मुख्यालय से काफी दूर था .सुबह जब मैंने आँखे खोली तो गाववालो ने बतया कि एक और शिक्षक आये है. मैंने उस शिक्षक को अपने पास रख लिया और अध्यापन कार्य करने लगे .

[छुआ छूत पर आधारित कहानी ] क्रमशः

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